खाने पीने की चिंता
कुछ लोग हमेशा इसी चिंता में रहते हैं की क्या खाए? कितना खाए? कैसे खाए? क्या ये खाना नुकसान तो नहीं करेगा? इसमें तेल ज्यादा है, अब तो दिनभर पेट खराब रहेगा। आज चावल खा लिए। हम तो रोटी खाते हैं।
खाने पीने के मामले में अधिकांश लोग अपनी कम और दूसरों की ज्यादा सुनते है। बचपन से लोग सुनते आए है ये मत खाओ नुकसान करेगा। इतना मत खाओ नुकसान करेगा। खड़े होकर मत खाओ नुकसान करेगा। खाना आपको नुकसान किया की नहीं ये तो नहीं पता लेकिन आपका डर आपको जरूर नुकसान पहुंचा रहा है।
बीमारियों का डर
मनुष्य का शरीर प्रकृति द्वारा ऐसा बनाया गया है की यह किसी भी परिस्थिति में अपने आप को एडजेस्ट कर लेता है।आज के समय में हम लोग जितना अच्छा हो सके पोष्टिक भोजन करने का प्रयास कर रहे है। साफ आर ओ का पानी पी रहें है। फिर भी डॉक्टर और बीमारियां पीछा नहीं छोड़ रही है। शायद ही कोई शुगर,ब्लडप्रेशर का मरीज न हो। हार्ड और किडनी की बीमारी आम बात हो गई है।आंख,और दांत की बीमारियां बच्चों तक को अपने लपेटे में ले रही है। बचपन से हमारा यही प्रयास रहता है की किस तरह का भोजन करे की बीमारियों से दूर रहे? किस तरह का लाइफस्टाइल रखें ताकि बीमारियों से दूर रहे? कैसे वातावरण में रहें ,ताकि बीमारियों से दूर रहें। और हम सब वह संभव उपाय कर भी रहे है। लेकिन बीमारियों से दूर हम नही रह पा रहें है।
पूर्वजों का रहन सहन
क्या कभी आपने इसपर विचार किया है। जितनी दूर हम बीमारियों से भाग रहें है। बीमारियां उतनी ही हमें अपनी गिरफ्त में ले रही है। आखिर ऐसा क्यों हो रहा है।
आइए आज के समय से थोड़ा पीछे चलते है। आपने दादा परदादा के जमाने में। जब सड़के नही थी,मेडिकल सुविधाएं नहीं थी। जीवन जीने की उतनी सुविधाएं उस समय नहीं थी जितनी आज है। अगर आप अपने दादा,परदादा को देखे होंगे तो थोड़ा याद करने की कोशिश कीजिए। उन्हें ,उस जमाने के लोगों को,उनके रहन सहन को।
जहां तक मुझे याद है। मेरे दादाजी के जमाने में लोग कुएं का पानी पीते थे। खेतों में जी तोड़ मेहनत करते थे। कुएं के पानी से या नदी के पानी में स्नान करते थे। जो भी खाना उपलब्ध था रोटी ,चावल ,सत्तू वगैरह खाना खाते थे। कोई टूथपेस्ट नही बल्कि दातून करते थे। सोने के लिए गर्मियों में बाहर पेड़ के नीचे या बगीचे में बिस्तर लगाते थे। कोई ए सी या कूलर नहीं था। जाड़े में पुआल का बिछावन करते थे।और भरपूर नींद लेते थे। फिर भी स्वास्थ्य थे। मेरे दादा जी सौ साल के बाद स्वास्थ्य जिंदगी जी कर दुनिया छोड़े है।और उस जमाने के लोग लगभग आज के जमाने के लोगों से ज्यादा स्वास्थ्य जिंदगी जीते थे।
मेरे समस्या का समाधान
क्या अब भी नही समझे? चलिए आज के समय में जरा उनलोगो को देखिए जो बहुत साधन संपन्न नहीं है। गरीब घर के लोग चिलचिलाती धूप में काम कर रहे है पसीने से लथपथ है। फिर भी हट्टे कट्टे स्वास्थ्य रहते है। साधन संपन्न लोग जहां ए सी से बाहर कुछ देर रहे गर्मी सहन नही कर पाते है बीमार पड़ जाते है। जाड़े में गरीब के बच्चे ठिठुर कर खेलते है स्वास्थ्य रहते है। हमारे बच्चे को जाड़े से बचा कर रखा जाता है फिर भी बीमार पड़ जाते है।
मैं कुछ अपना एक्सपीरियंस बताना चाहता हूं। एक बार मैने महसूस किया की मेरे दातों के मसूढों से खून आ रहा है। धीरे धीरे ये परेशानी इतनी बढ़ गई की जब भी मैं दातों पर उंगली फेर देता , खून से उंगली लाल हो जाता था। थूकने पर सिर्फ खून ही निकलता था। ब्रश करने पर ब्रश तो लाल हो ही जाता था कुल्ला करने पर पानी की जगह खून ही नजर आता था। मैं काफी परेशान हो गया । कई डॉक्टर से दिखाया कोई खास फायदा नहीं हुआ। बहुत सारे महंगे महंगे टूथ पेस्ट का इस्तेमाल किया कोई फायदा नही हुआ। लोगों द्वारा बताए गए कई नुस्खे अपनाए कोई फायदा नही हुआ। लगभग छ: महीने तक मैं परेशान रहा।
फिर मैंने ब्रश करना छोड़ दिया। लाल पाउडर हथेली पर रखकर उंगली से सुबह शाम मंजन करने लगा। कुछ दिनों के बाद खून आना बंद हो गया। मैं आज भी या तो दातून करता हूं या उंगली से लाल मंजन करता हु। खून आने की समस्या पूरी तरह समाप्त हो गया है। शायद और लोगों को भी इससे फायदा हो।
नेचुरल चीजों का इस्तेमाल करें
अगर स्वास्थ्य रहना है तो आपको प्रकृति के करीब रहना होगा। कृत्रिम चीजों से दूरी बना कर रहनी होगी। प्रकृति ने शरीर को बनाया है। आप शरीर को जैसा चाहे वैसा बना सकते है। आप चाहे तो मन , आत्मा और शरीर को मजबूत बना लें। चाहें तो कमजोर। क्योंकि ये शरीर ऐसा है की हर वातावरण में एडजस्ट होना जनता है। आगर आप ठंडे प्रदेश के रहने वाले है और गर्म प्रदेश में रहना पड़े तो कुछ दिनों तक परेशानी हो सकती है। बाद में धीरे धीरे आपका शरीर वहां के आबोहवा के अनुरूप ढल जाता है। आप वहां एडजस्ट कर जाते है। सिर्फ कृत्रिम वातावरण का त्याग कर दीजिए बीमार नहीं होंगे।
इसी तरह खाने पीने के मामले में है। आप ज्यादा अच्छा हो नेचुरल चीजों को खाएं। जैसे पेड़ का पका हुआ फल कभी नुकसान नहीं कर सकता है। वही फल कैमिकल द्वारा पकाया गया हो तो कभी फायदा नही कर सकता है। खाना घर का बना हुआ हो,और भूख से थोड़ा कम खाए नुकसान नहीं करेगा। ठूस ठूस कर खाने के क्या परिणाम होंगे समझ सकते है। शाकाहारी , मांसाहारी कोई भी खाना खाते हो भूख से थोड़ा कम खाइए।
सुरक्षात्मक दृष्टिकोण का त्याग
सबसे जरूरी बात,बहुत ज्यादा सिक्योरिटी में रहने वाले व्यक्ति के पास से सिक्योरिटी हटा दिया जाय तो क्या होगा? खतरा,,,।उसका कोई भी दुश्मन उसपर अटैक कर देगा। उदाहरण -- अगर आप हर वक्त आर ओ का पानी पीते है और किसी कारण बस आर ओ का पानी नहीं मिला तो शरीर आपका उस पानी को एडजेस्ट नही कर पायेगा आप बीमार पड़ जायेंगे। आप हमेशा ए सी में रहते है , किसी कारण बस हीट गर्मी में रहना पड़े तो आपका शरीर उस गर्मी को एक्सेप्ट नही कर पायेगा आप बीमार पड़ जायेंगे। आप हमेशा रोटी दूध खाते है, किसी कारण बस आपको कोई दूसरा खाना मिला मिला तो पेट दूसरा खाना डाइजेस्ट नही कर पायेगा आप बीमार पड़ जायेंगे।
कहा गया है की इलाज से बेहतर बचाव। इस कहावत को जीवन में अपनाने से पहले ये तय कर लेना जरूरी है की बचाव कितना किया जाय। किस हद तक किया जाय। ऐसा नहीं हो की बचाव ही बीमारियों का कारण बन जाय। गमले के फूल को इतना ना कैद कर दिया जाय की थोड़ा सा धूप लगते ही सूख जाय।
मेहनत की चमक
एक दूसरा उदाहरण -- लोहे की दो कुदाल दुकान से खरीद कर लाइए। एक कुदाल को तेल लगाकर खूब अच्छे तरीके से किसी घर के कोने में रख दीजिए। दूसरे कुदाल से रोज काम लीजिए। खेत कोडिये,घास छीलिए,मिट्टी काटिए। छः महीने के बाद दोनो कुदाल को एक साथ कीजिए। आपको क्या अंतर देखने को मिलेगा? आप देखिएगा की जिस कुदाल को सुरक्षित कोने में रखे थे उसका चमक उड़ गया होगा। उसमे जंग लग गया होगा। लेकिन जिस कुदाल से आप रोज मिट्टी काट रहें थे ,वह चमक रहा होगा।
यही काम इस शरीर से लेना पड़ेगा।जितना शरीर को कष्ट दीजिएगा जितना धूप में जलाईएगा,पानी में भिगाइएगा,जाड़े से लड़िएगा शरीर की सहन शक्ति उतनी ही बढ़ेगी। रोगों से लड़ने में यह रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाएगा। आपका शरीर कुंदन की भांति निखर जायेगा। बीमारियां और डॉक्टर कोसों दूर रहेंगे।
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