उत्तराखंड भारत की देवभूमि। गगन चुम्बी पहाड़, पहाड़ों के नीचे बादलों का समुंद्र। झीलों और झरनों का संगम। तपस्वियों की कर्मस्थली। पर्यटकों का पसंदीदा जगह। इस खूबसूरत वादियों में स्थित जोशी मठ।
आज खबरों की शुर्खियो में जोशीमठ ही बना हुआ है। जोशी मठ में दरारें बढ़ने लगी है। घरों में, मंदिरों में दीवारें फट रही है। सड़कों पर भी दरारें साफ दिखाई दे रहीं हैं। सैकड़ों परिवारों को विस्थापन का दर्द सहना पड़ रहा है। उत्तराखंड की सरकार लोगों के सुरक्षा के लिए सारे इंतजाम कर रही है। चारो तरह भय का वातावरण है। लोग डरे हुए है। क्या सचमुच जोशी मठ धरती के गर्भ में समा जायेगा। आगे का हालात जानने से पहले जोशी मठ के बारे में जानना जरूरी है।
जोशी मठ
जोशी मठ को बद्रीनाथ धाम का प्रेवेश द्वार कहा जाता है। उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित जोशी मठ कालांतर में ज्यातिर्मठ के नाम से जाना जाता था। समय के साथ ज्योतिर्मठ का अपभ्रंश नाम जोशी मठ हो गया है। बद्रीनाथ धाम जाने से पहले जोशीमठ में नृसिंह मंदिर का दर्शन करना अनिवार्य माना जाता है। उसके बाद ही भगवान बद्री विशाल का दर्शन किया जाता है।
संबंधित पोस्ट्स
💢 सरकारी नौकरी : 🔥 एमपी में निकली पटवारी पद के लिए बंपर भर्ती। 19 / 01 / 2023 तक कर लें आवेदन⭐?
💢 सरकारी नौकरी : 🔥 सीआरपीएफ में नौकरी करने का सुनहरा मौका। जानिए कैसे करें आवेदन ⭐?
💢 सरकारी योजनाएं: 💥 बिहार मुख्यमंत्री कन्या उत्थान योजना (इंटरमीडिएट +2) में आवेदन कैसे करें ✍️?
💢 सरकारी योजनाएं: 💥बिहार मुख्यमंत्री 10th पास प्रोत्साहन योजना 2023 में आवेदन कैसे करें✍️?
आदि गुरु शंकराचार्य और जोशी मठ
8 वी शताब्दी में आदि गुरु शंकराचार्य को यहीं ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। कहा जाता है की शहतूत के पेड़ के नीचे शंकराचार्य को ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। आदि गुरु शंकराचार्य ने चारों दिशाओं में चार मठों को स्थापित किया था। पहला मठ उन्होंने यहीं ज्योतिर्मठ में ही स्थापित किया था। इसलिए जोशी मठ का आध्यात्मिक महत्व बहुत ही ज्यादा है। इसके आलावा भी कई पूजनीय स्थल यहां मौजूद है। सालो भर पर्यटकों का आना जाना यहां लगा रहता है। बद्रीनाथ धाम, औली और नीति घाटी के नजदीक होने के कारण यहां पर्यटकों की भीड़ हमेशा बनी रहती है।
जोशी मठ में क्या हो रहा है?
यही जोशी मठ आज खतरे में है। समुंद्र तल से 8, 200 फीट की ऊंचाई पर स्थित जोशी मठ दरक रहा है। यहां घरों की दीवारें फट गई है। सड़कें फट गई हैं और दिन पर दिन ये दरारें चौड़ी हो रहीं हैं । लोग डर के साए में जी रहे हैं। प्रशासन के तरफ से ज्यादा खतरनाक बिल्डिग्स को गिराया जा रहा हैं । लोगों को तत्कालिक मदद दिए जा रहें हैं।
कहानी सिर्फ जोशी मठ की नही है। ये तो सिर्फ प्रकृति का एक संदेश भर हो सकता है। ये भी हो सकता है की आज जोशी मठ ,कल कही और तो परसों कहीं और।
दोषी कौन
जोशी मठ उजड़ने के कारणों की पड़ताल में चाहे हम दोष किसी के मत्थे मढ दें। चाहे वह NTPC की परियोजनाएं हो, चाहे कंट्रक्शन की कंपनिया हो चाहे वजह ब्लास्टिंग हो। सबको पता है की प्रकृति के साथ खिलवाड़ करना कितना खतरनाक है। फिर भी हम विकाश की आंधी दौड़ में प्रकृति से खिलवाड़ करते चले जा रहे हैं। अंधाधुंध बड़ी बड़ी बिल्डिंगो का निर्माण, सड़कों का चौड़ी कारण और पहाड़ों को तोड़ कर मलबों से पहाड़ी नदियों के रस्तों को संकरा करना या बंद करना कितना खतरनाक हो सकता है सबको पता है। जंगलों की अंधाधुंध कटाई और पहाड़ों पर बढ़ती जनसंख्या क्या गुल खिलाएंगे सबको पता है। फिर भी विकाश के नाम पर हम यह सब करते जा रहें हैं। जिस सुविधा को हम विकसित कर रहे है अपने आराम के लिए शायद यही एक दिन अभिशाप न बन जाय।
संबंधित पोस्ट्स
💢 Shadi me kaun kaun si rasme hoti hai? En rasmo ka kya mahatwa hota hai?
💢 Hamare jiwan me riwajo aur sanskaro ka hona kyo jaruri hai|
💢 Digital Rupee : किसे मिलेगा डिजिटल रूपया? जानिए Digital Rupeya के फायदे।
💢 Kharid lijiye garam kapade. Es sal padegi kadake ki thandh, janiye kyo ?
नदियां और पहाड़
नदियों की बात करें तो धौली गंगा विष्णुप्रयाग में आकर मिलती है जो जोशी मठ के ऊपर है। नीचे की तरफ गरुण, पाटल, हेलैंग और बिरहीगंगा अलकनंदा में मिलती है जो जोशी मठ और चमोली के बीच में स्थित हैं। इन नदियों का बहाव काफी तेज होता है। ये नदिया काफी कटाव करती हैं। इसके अलावा उत्तराखंड की पहाड़ियों और पूर्वोत्तर के पहाड़ियों की संरचना में भी काफी अंतर है। पूर्वोत्तर के पहाड़ों की चट्टानें उत्तराखंड के पहाड़ों की चट्टानों से ज्यादा कठोर होती है। 2013 केदारनाथ में आए तबाही को हमें नही भूलना चाहिए।
उत्तराखंड देवभूमि
समझने की बात यह है की उत्तराखंड को देवभूमि कहा जाता है। कहते हैं की जोर से चिल्लाने पर भी देवभूमि के पहाड़ों में कंपन होता है। तो क्यों नहीं देवभूमि को देवभूमि ही रहने दिया जाय। अपने फायदे के लिए पहाड़ों की प्राकृतिक संरचना में बदलाव कितना उचित है इसका फैसला आप को करना है।
भूकंप की दृष्टि से उत्तराखंड
उत्तराखंड भूकंप के अति संवेदनशील जोन 5 के अंतर्गत आता है। खासकर उत्तरकाशी, चमोली, रुद्रप्रयाग,मुनस्यारी आदि स्थानों पर धरती के नीचे 10 से 25 किलो मीटर की गहराई में पहले भी भूकंप आते रहे है। कोई बड़ा भूकंप कितना खतरनाक हो सकता है कल्पना से परे है। इन स्थानों पर बादल फटना, भूस्खलन आदि घटनाओं से भी इनकार नहीं किया जा सकता है। पहाड़ों का सिकुड़ना और फटना भी असामान्य घटना है।
अभी भी वक्त है
जोशी मठ के दरारों के अध्ययन से चाहे जो भी बात निकले ये तो सत्य है की खतरा अभी बढ़ने वाला है। प्रकृति के संकेतों को हमे समझना ही होगा। अपने व्यवहार को प्रकृति के अनुरूप हमे बनाना ही होगा। प्रकृति से खिलवाड़ को हमें रोकना ही होगा।
संबंधित पोस्ट्स
💢 2022 Chhath puja : Kya bhagwan shree Ram aur mata sita ne bhi kiya tha Chhath puja ?
💢 2022 chhath puja me kosi kaise bhara jata hai|
💢 Dipawali ka samajik mahatwa kya hai| logon ke jiwan par eska kya asar padta hai |
💢 Kya aapka bachha bhi darta hai | Ho sakta hai penic attack |
💢 Safal logon se safalta ke niyam kaise sikhen|
0 Comments