वैसे तो हमारे पूरे जीवन को भाषा और धर्म के आधार पर रिवाज हमे प्रभावित करते है। संस्कारों के हिसाब से हमको काम करना पड़ता है। कदम कदम पर हम अपने संस्कृति के हिसाब से जीवन यात्रा पूरी करने की कोशिश करते है।लेकिन शादियों में होने वाले रिवाज अदभुत और अविस्मरणीय होते है। जिसे जीवन में भुला पाना असम्भव है। आइए हमारे यहां किस तरह से शादियां होती है ,बताने का कोशिश कर रहा हूं।
हल्दी का रस्म
जब शादी की शुरुआत हो जाती है तो वर पक्ष और वधू पक्ष दोनों तरफ घर में खुशियों का वातावरण रहता है। सगाई होने के बाद शादी का डेट फिक्स हो जाता है और रस्मों रिवाज का दौर चालू हो जाता है। शुरुआत हल्दी के रस्म से होता है। लड़के वाले अपने घर ये रस्म करते है तो लड़की वाले अपने घर। इस रस्म में लड़के के घर कुंवारे लड़के पंडित जी के मंत्रोच्चार के बीच लड़के को हल्दी चढ़ाते है या यूं कहें की हल्दी लगाते है। ठीक उसीप्रकार लड़की को भी पांच कुंवारी लड़कियां हल्दी लगती है। साथ ही महिलाए पारंपरिक लोक गीत गाती है ।
बारात निकलना
शादी के दिन लड़के के घर से बारात निकल कर लड़की के घर पहुंचता है। लड़के को पारंपरिक लोक गीत गाते हुए महिलाए सबसे पहले नहलाती है। फिर लड़के के बहनोई नए कपड़े पहना कर सजाते है। सजाने के बाद लड़के को वर या दूल्हा कहा जाता है। शादी होने तक दूल्हा नाम से ही संबोधित किया जाता है।
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इमली घोटना
उसके बाद इमली घोटाने का रस्म होता है। जो लड़के के मामा के द्वारा किया जाता है। इस रस्म में लड़के(वर )की मां वर को अपने गोद में बैठती है । मामा आम का पत्ते को वर के सामने करता है। वर अपने दांतो से पत्ते को थोड़ा सा कटता है। छोटा टुकड़ा वर की मां निगलती है। लोटे में पानी रखा होता है। मामा लोटे का पानी वर की मां यानी अपनी बहन को पिलाता है। ये रस्म पांच बार किया जाता है।
यही रस्म सेम टाइम दुल्हन के घर भी होता है। दूल्हे के घर दूल्हे का मामा तथा दुल्हन के घर दुल्हन का मामा इस रस्म को करते है।
द्वार पूजा
जब बारात दुल्हन के दरवाजे पर आ जाता है तब सबसे पहला रस्म द्वार पूजा का होता है। इस रस्म में दुल्हन के घर के बाहर मुख्य दरवाजे के सामने वर को बैठाया जाता है।दुल्हन के पिता दूल्हे को आसन देते है। पंडित द्वारा कलश की पूजा की जाती है। इस पूजा में दूल्हा और दुल्हन के पिता सामिल होते हैं। दोनों मिलकर पंडित द्वारा कराए जा रहे पूजा को संपन्न करते है। अंत में दुल्हन के पिता द्वारा दूल्हे को तिलक लगाया जाता है। फिर इस पूजा का समापन हो जाता है। यह द्वार पूजा कहलाता है।
जयमाल
द्वार पूजा के तुरंत बाद दूल्हे को स्टेज पर पहुंचाया जाता है।वहां दुल्हन को उसकी सहेलियों और भाईयो द्वारा लाया जाता है। सजी धजी दुल्हन और सजा धजा दूल्हा स्टेज पर लोगों के केंद्र बिंदु होते है। सबकी नजर उन दोनो पर होती है। थोड़ी हंसी ठिठोली के बाद दुल्हन दूल्हे को जय माला पहनाती है। दूल्हा भी दुल्हन को जय माला पहनाता है। फिर दूल्हा दुल्हन को स्टेज पर रखे सिंहासन नूमा कुर्सी पर बैठाया जाता है। वही दूल्हा पक्ष के लोग और दुल्हन पक्ष के लोग बारी बारी से दूल्हा और दुल्हन को आशीर्वाद देते है। इसी के साथ जयमाल का रस्म पूरा होता है।
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बरनेत का रस्म
देखिए हमलोगों के यहां शादियों में इतना खूबसूरत खूबसूरत रस्म मनाया जाता है की आपको जानने का जिज्ञासा भी होगा और बहुत अच्छा भी लगेगा। ऐसा ही एक प्यारा रस्म बरनेत का होता है। बरनेत में दुल्हन की पूजा दूल्हे के बड़े भाई द्वारा की जाती है। यहां दूल्हा का बड़ा भाई भसूर बन कर मड़वा में आते हैं। मड़वा में दुल्हन पहले से बैठी रहती है। पंडित द्वारा दुल्हन से और भसुर (दूल्हे का बड़ा भाई)से पूजा करवाया जाता है। भसूर दुल्हन को तिलक लगता है। वह दुल्हन को आशीर्वाद स्वरूप एक माला पहनाता है। फिर दुल्हन को भसूर द्वारा कपड़े,गहने मिठाई फल वगैरह गिफ्ट दिया जाता है। इन सभी रस्मों में महिलाओं द्वारा बहुत ही प्यारा प्यारा पारंपरिक गीत गाया जाता है जो रस्मों को और भी खूबसूरत बना देते है। इस तरह बरनेत का रस्म पूरा होता है।
आपको मड़वा के बारे में बताना जरूरी है। क्योंकि मड़वा को जाने बिना शादी के सारे रस्मों को जानना अधूरा रहेगा।
मड़वा क्या है
देखिए हिंदू धर्म में लड़की की शादी का मतलब लड़की के पिता द्वारा कन्यादान होता है। और कन्यादान में एक पिता कन्या के साथ साथ कन्या के आवश्यकता की सभी वस्तुओं का भी दान करता है। चाहे कपड़े हो गहने हो कन्या के सोने से लेकर खाना बनाने तक का सामान हो। आप यूं कहें की कन्या के आवश्यकता के सारे सामान एक पिता अपने सामर्थ्य के अनुसार कन्या के साथ ही दान करता है। ताकि बेटी को ससुराल में कोई तकलीफ नहीं हो। कन्यादान का काम दान किए गए स्थान पर ही किया जाता है। घर के आंगन में दुल्हन के हाथ से नापकर पांच और सात हाथ लंबा चौड़ा एक छत बनाया जाता है। इसमें नया और हरा बांस तथा खर (एक प्रकार का घास) का प्रयोग किया जाता है। शादी से संबंधित सारा रस्म इसी छत के नीचे किया जाता है। कन्यादान भी इसी छत के नीचे किया जाता है।यही जगह मड़वा कहलाता है।
कन्यादान
बरनेत के बाद कन्यादान का रस्म होता है। पंडित जी द्वारा मंत्रोच्चार के बीच दुल्हन के माता पिता द्वारा कन्यादान कराया जाता है। यह बहुत ही भावुक पल होता है। कन्यादान के समय वहां उपस्थित सभी लोगों के आंखों में आसूं होते है। दुल्हन को माता पिता अपने गोद में बिठाते है।मंत्रोच्चार के बीच बहुत सारे रीति रिवाजों को पूरा करते हुए कन्यादान का रस्म पूरा किया जाता है।
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माथढका
शादियों में माथढका एक बहुत की सुंदर रिवाज है। जो लगभग शादी के सारे कार्यक्रम के बाद निभाया जाता है। इस रिवाज में दूल्हा दुल्हन तथा दूल्हे के पिता ( समधी) होते है। दुल्हन बैठी होती है। उसके सर पर साड़ी का पल्लू होता है। दूल्हा उस साड़ी के पल्लू को ऊपर उठाता है। दूल्हे के पिता दुल्हन के सर पर पल्लू गिराते है। दूल्हा पल्लू को फिर ऊपर उठाता है। दूल्हे के पिता फिर से दुल्हन का पल्लू नीचे कर देते है। ये विधि दोनो के द्वारा पांच बार किया जाता है। इस रस्म में एक संदेश भी छिपा होता है। बहुत ही प्यारा रस्म है यह। इसका संदेश यह है की दूल्हा कहता है की मैं अपनी पत्नी को बंधन में नहीं रखूंगा। इसलिए वह माथे का पल्लू उठता है, जबकि दूल्हे का पिता कहता है की की उसे संस्कारों में बंध कर रहना होगा। इसलिए वह पल्लू फिर से ढंक देता है। ये रस्म और मान्यता है।
विदाई
अंत में मायके से बेटी की बिदाई होती है। यह बहुत ही भावुक कर देने वाला क्षण होता है। कहा जाता है की बेटी की बिदाई के वक्त पत्थर दिल आदमी के आंखों में भी आंसू आ जाते हैं। एक लड़की बचपन से जिस घर में रहती है।बड़ी होती है। उस घर की ढेर सारी यादें सहेज कर हमेशा के लिए जब वह घर छोड़ती है,तो आंखों से आंसू आना स्वाभाविक है। विदाई के उस एक क्षण में सारी यादें फिल्म के किसी रील की तरह उसके आंखो के सामने घूम जाते है। पिता माता का प्यार,भाई बहन की आपस की लाडाई और चुहलबाज़ी,सहेलियों का साथ सब एक क्षण में छूटना बहुत ही दुःख दाई होता है।
इस तरह शादी रीति रिवाज और संस्कारो का संगम होता है। रीति रिवाज और संस्कारो से दो परिवारों का संबंध भी मजबूत होता है। ये रिवाज आगे आने वाली पीढ़ियों को पिछली पीढ़ियों से जुड़ने में काफी मदद करते हैं।
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