Hamare jiwan me riwajo aur sanskaro ka hona kyo jaruri hai|

 काजल आंख में ही शोभा देता है। अगर दूसरे किसी जगह लगा दिया जाय तो वह कालिख ही कहलाएगा। ठीक उसी तरह जूते की कीमत चाहे जो भी हो वह पैर के ही अच्छा लगता है। टोपी कितनी भी सस्ती हो सर पर अच्छी लगती है। ये सब बाते समाज में मिसाल के तौर पर पर हमेशा कही जाती है।


ये बाते मैं आपसे क्यों कह रहा हूं

 भारत रिवाजों का देश है। अगर रिवाज और परम्परा से हटकर कोई भी काम किया जय तो शोभा नहीं देता है। साथ ही वह काम समाज द्वारा सही गलत,उचित अनुनिच के तराजू पर बराबर तौला जाता रहेगा। भारतीय जन मानस जन्म से लेकर मृत्यु तक अपने अपने रिवाजों के अनुसार ही सारा काम करते है। यही हमारा संस्कार है। जन्म के साथ जो रिश्ते हमे मिलते है उसका पहला नाम होता है मां। एक बच्चा सबसे पहले अपने मां को पहचानता है। फिर पिता को। यहां से जीवन के सफर की शुरुआत होती है। फिर जिन रिस्तों से हमारा सामना होता होता है वह दादा दादी,चाचा चाची,बुआ फूफा। ये रिश्ते पिता के तरफ से मिलते है जो परिवार को खूबसूरत ही नहीं बनाते बल्कि बच्चे को ताकतवर बनाते है और सुरक्षा का अहसास दिलाते है।

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मां के परिवार से रिश्ता

थोड़ा बड़ा होनेवके बाद जिन रिश्तों से हमारा परिचय होता है वह हैं नाना नानी, मामा मामी। जो माता के तरफ से मिलता है। ये रिश्ते ही जीवन के आधार है। इन रिश्तों से हम जीवन जीना सीखते है। अपने घर और परिवार के रीति रिवाज सीखते है। क्या करना चाहिए क्या नही करना चाहिए ये सीखते है। एक दूसरे के सुख और दुख में सपोर्ट करना सीखते है।

समाज से रिश्ता

जब हम और बड़े होते हैं तब हमारा सामना पास पड़ोस के लोगो से होता है। गांव समाज के लोग मिलते है। कुछ दोस्त बन जाते है। फिर देश और दुनिया को जानने समझने का मौका मिलता है। पर कमाल की बात यह है की आप कुछ भी हो जाय। कहीं भी चले जाए। दुनियां के किसी भी हिस्से में चले जाए। आपके रिवाज और संस्कार हमेशा आपके साथ होते है। आप अगर उसे छोड़ दे तो आपकी पहचान मिट जाती है। जिस तरह डाल से टूटा हुआ पत्ता। बचपन से जिन रिवाजों के साथ आपके परिवार के लोगों ने आपको बांधा होता है वह जगह बदलने के बाद भी नहीं छूटता है। उन लोगों का साथ छूटने के बाद भी नहीं छूटता है।

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आधुनिकता और रिवाज

 आधुनिकता के नाम पर रिवाजों से मुंह मोड़ना उचित नहीं है। जरा ऐसे लोगो को देखने का प्रयास कीजिएगा। ना सुख है न शान्ति। न परिवार में रिस्तो का सम्मान है ना भावनाओं की कद्र। ना समाज में सम्मान है ना  अपनों में सुरक्षा की भावना। बस वैसे लोग जिंदगी जिए चले जा रहें है। नीरस बेरंग और उदास।

शादी का रिश्ता

शादी,एक खूबसूरत रिश्ते की शुरआत होती है। शादी ,एक ऐसा रिश्ता जिससे दो दिलों का मिलन ही नहीं होता है बल्कि दो परिवारों का भी मिलन होता है। दो रिवाजों और संस्कारों का मिलन होता है। कहीं कही दोनों परिवारों के रिवाजों का टकराव भी हो जाता है। बर्चस्व की भावना भी हावी हो जाती है। लेकिन मिलन तो मिलन होता है। जिसतरह दो नदियों के मिलन वाले स्थल पर ,किसी नदी का साफ पानी किसी नदी के गंदे पानी में मिलकर एकाकार हो जाते है। दो अलग अलग रंग के नदियों का पानी एक में मिलकर एक अलग रंग बना लेता है। ठीक ऐसे ही शादी के बाद दो परिवारों के रिवाज और संस्कार आपस में घुल मिल कर एकाकार हो जाते हैं।  

शादी परिवार के और समाज के सभी लोगों के भागीदारी का एक अनोखा संगम होता है। शादी में परंपराओं को बहुत ही जिम्मेदारी के साथ निभाया जाता है। कैसे ,ये अगले पोस्ट में बताऊंगा। बस आप परंपराओं से बंधे रहे और जिंदगी जीने का मजा लेते रहें। 

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